Punjab के किसान, जो पिछले 11 महीने से Punjab और हरियाणा की सीमाओं पर आंदोलन कर रहे हैं, अब भी अपनी मांगों को लेकर डटे हुए हैं। यह आंदोलन पिछले साल 13 फरवरी से हरियाणा की सीमा पर स्थित खनौरी (संगरूर जिला) और शंभू बॉर्डर (पटियाला जिला) पर जारी है। शुरुआत में किसानों ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी के लिए कानून बनाने सहित कई अन्य मांगें उठाई थीं, लेकिन अब उनकी मांगें और अधिक व्यापक हो गई हैं। इस आंदोलन का नेतृत्व संयुक्त किसान मोर्चा (गैर राजनीतिक) द्वारा किया जा रहा है, और उसके प्रमुख नेताओं में से एक, जगजीत सिंह डल्लेवाल, 24 फसलों के लिए एमएसपी की कानूनी गारंटी की मांग को लेकर खनौरी किसान मोर्चा में भूख हड़ताल पर हैं।
डब्ल्यूटीओ से भारत का बाहर होना चाहिए – किसानों की नई मांग
Punjab के किसानों ने अब एक और महत्वपूर्ण मांग उठाई है कि भारत को विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) से बाहर निकलना चाहिए और कृषि संबंधित मुक्त व्यापार समझौतों को निलंबित कर देना चाहिए। उनका तर्क है कि डब्ल्यूटीओ के नियम बड़े और विकसित देशों के पक्ष में हैं, जिससे छोटे भारतीय किसानों को नुकसान हो रहा है। फरवरी 2024 में, पंजाब के किसानों ने ‘डब्ल्यूटीओ छोड़ो दिवस’ मनाया, जिसमें उन्होंने डब्ल्यूटीओ की नीतियों को भारतीय खाद्य सुरक्षा, छोटे किसानों और उनकी आजीविका के लिए खतरे के रूप में चित्रित किया, विशेष रूप से पंजाब में।
डब्ल्यूटीओ का कृषि समझौता और इसके प्रभाव
किसान यूनियनों का कहना है कि डब्ल्यूटीओ का कृषि समझौता, जो कृषि सब्सिडी को कम करने और एक अधिक न्यायपूर्ण व्यापार प्रणाली बनाने के लिए लागू किया गया था, असल में भारत जैसे विकासशील देशों के खिलाफ है। इस समझौते में कृषि उत्पादों को शामिल किया गया है, लेकिन वन उपज, मछली पालन, जूट और कॉयर जैसे उत्पादों को इसमें नहीं रखा गया है। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय किसान यूनियन के महासचिव जगमोहन सिंह ने कहा कि डब्ल्यूटीओ के नियम विकसित देशों को अपने किसानों को उच्च सब्सिडी देने की अनुमति देते हैं, जबकि भारत को अपने घरेलू समर्थन कार्यक्रमों, जैसे एमएसपी और सब्सिडी, पर प्रतिबंधों का सामना करना पड़ता है।
भारत के लिए डब्ल्यूटीओ की नीतियों का खतरा
जगमोहन सिंह ने डब्ल्यूटीओ की बैठकों में भारत का प्रतिनिधित्व कमजोर होने के लिए केंद्र सरकार की आलोचना की। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार ने विकसित देशों की अनुचित नीतियों को स्वीकार किया है। उन्होंने कहा कि अमेरिका जैसे देश उच्च सब्सिडी देने के लिए चतुराई से वर्गीकृत योजनाओं का इस्तेमाल करते हैं, जबकि विकासशील देशों पर दबाव डालते हैं कि वे अपनी एमएसपी को कम करें। उनका कहना था कि इन मुद्दों पर ध्यान न दिया गया तो यह भारत की खाद्य सुरक्षा, छोटे किसानों की आय और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को खतरे में डाल सकता है।