हरियाणा में आगामी Rajya Sabha चुनाव से पहले कांग्रेस ने एक बार फिर मैदान से बाहर होने का निर्णय लिया है। पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने घोषणा की है कि पार्टी इस बार भी राज्यसभा की खाली सीट के लिए अपना उम्मीदवार नहीं उतारेगी। यह फैसला पार्टी के लिए रणनीतिक सरेंडर के रूप में देखा जा रहा है, जिससे यह संकेत मिलता है कि कांग्रेस को अपनी जीत की संभावना कम लग रही है।
भाजपा के दबदबे के बीच कांग्रेस का कदम
राज्यसभा की यह सीट पानीपत के इसराना से भाजपा विधायक द्वारा इस्तीफा देने के बाद खाली हुई थी। पूर्व सीएम हुड्डा ने सोनीपत में मीडिया से बातचीत में स्पष्ट किया कि कांग्रेस के पास विधायकों की पर्याप्त संख्या नहीं है, इसलिए पार्टी उम्मीदवार खड़ा नहीं करेगी। भाजपा के पास वर्तमान में 48 विधायक हैं, जबकि कांग्रेस के पास 37 विधायक हैं, जो संख्या के लिहाज से चुनाव जीतने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।
कांग्रेस की पिछली रणनीति का दोहराव
यह दूसरी बार है जब कांग्रेस ने राज्यसभा चुनाव में अपना उम्मीदवार न उतारने का फैसला किया है। इससे पहले लोकसभा चुनाव के दौरान भी कांग्रेस ने हरियाणा की एक राज्यसभा सीट पर उम्मीदवार नहीं उतारा था, जिससे भाजपा की किरण चौधरी निर्विरोध चुनी गई थीं। उस समय भी कांग्रेस ने यह तर्क दिया था कि उनके पास विधायकों की संख्या कम है, हालांकि तब विपक्ष के पास भाजपा से अधिक विधायक थे।
20 दिसंबर को होगा चुनाव
राज्यसभा के इस सीट पर चुनाव 20 दिसंबर को निर्धारित है। कांग्रेस के इस कदम ने राजनीतिक हलकों में चर्चा को जन्म दिया है। जहां भाजपा अपनी स्थिति मजबूत करने में जुटी है, वहीं कांग्रेस का यह निर्णय विपक्ष के कमजोर आत्मविश्वास की ओर इशारा करता है।
पार्टी के भीतर उठ रहे सवाल
कांग्रेस के इस फैसले के बाद पार्टी के भीतर और बाहर कई सवाल उठ रहे हैं। क्या यह रणनीतिक निर्णय है या फिर पार्टी की गिरती स्थिति का संकेत? आलोचकों का मानना है कि यह कदम कांग्रेस के आत्मसमर्पण के रूप में देखा जा सकता है, जबकि समर्थकों का कहना है कि संख्या बल की कमी के चलते यह एक व्यावहारिक निर्णय है।
हरियाणा में बदलते राजनीतिक समीकरणों के बीच कांग्रेस का यह निर्णय पार्टी की रणनीति और भविष्य की दिशा पर सवाल खड़े करता है।