Chhatrapati Sambhaji Maharaj: मराठा साम्राज्य वीर योद्धाओं की गाथा से भरा हुआ है ऐसे ही एक वीर योद्धा थे छत्रपति संभाजी महाराज जिनके नाम से दुश्मन काँप जाते थे
Chhatrapati Sambhaji Maharaj
आज से 400 साल पहले दिल्ली की सत्ता पर मुगलिया बादशाह औरंगजेब की हुकूमत थी। कट्टरता, क्रूरता और हैवानियत का जीता जागता चेहरा औरंगजेब पूरे भारत पर मुगलिया हुकूमत का झंडा लहराने को बेताब था।
उत्तर को जीतने के बाद औरंगजेब की विशाल बर्बर सेनाएं दक्षिण भारत को विजयी करने निकली पर दक्षिण में उसकी राह का सबसे बड़ा रोड़ा थे छत्रपति शिवाजी। जिनके जीवित रहते औरंगजेब कभी दक्कन में पाँव ना रख सका ईस्वी सन 1680 में शिवाजी राजे की मृत्यु के बाद औरंगजेब की दक्षिण विजय का सपना फिर से जागा और उसने अपनी पूरी फौज दक्कन में उतार दी।
लेकिन इन्हीं संकट के काले बादलों के बीच महाराष्ट्र की धरती पर हिंदुत्व की एक चिंगारी ने जन्म लिया, जिसने मुगलों पर ऐसा कहर बरपाया कि दक्कन सहित संपूर्ण भारत में मुगलों के खौफ से आजाद हो गया। यह महागाथा है एक ऐसे फौलादी जिगर वाले हिंदू राजा की, जिसने 25 सालों तक औरंगजेब से इतने युद्ध लड़े की औरंगजेब का उठना, बैठना, जीना, खाना, सुख, चैन सब मुश्किल कर दिया। परंतु जब यह वीर योद्धा औरंगजेब की पकड़ में आया। तो क्रूर औरंगजेब ने इस वीर योद्धा को ऐसी दर्दनाक मौत दी की स्वयं यमराज भी कांप उठे।
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तो आइये जानते हैं संभाजी महाराज (Chhatrapati Sambhaji Maharaj) की वीरता की वो कहानी, जिसको सुनकर गीदड़ भी शेर बन जाएँ,
हाथ में भवानी और तिलकधारी मस्तक वाले उस हिंदू योद्धा का नाम था छत्रपति संभाजी महाराज। पर आखिर कौन थे छत्रपति संभाजी महाराज जिन्हें इतिहास के पन्नों में हिंदू वीर योद्धा के नाम से जाना जाता है?
महाराष्ट्र की धरती से हिंदू हुकूमत का बिगुल फूंकने वाले छत्रपति संभाजी महाराज एक प्रतापी योद्धा थे। वो एक बवंडर था जिसने नौ सालों में 120 लड़ाईयां लड़ कर मुगल हुक्मरानों की सत्ता हिला दी।
वो परम स्वाभिमानी शिवभक्त था, जिसकी भुजाओं के प्रताप से दिल्ली की सल्तनतें सहम उठी। 60 किलो की तलवार लेकर वो रणभूमि में उतरता। 13 साल की उम्र तक 13 भाषाओं का ज्ञान था उसे, शस्त्र शास्त्र का वो प्रकांड पंडित था जिसने हिंदुओं के लिए कई शास्त्र लिख डाले। उसके खूंखार 20,000 योद्धा उसके एक इशारे पर मुगलों की सेना में मातम पसार देते।
वो खुला घूमने वाला हिंदू राजा था, जिसने गोवा से पुर्तगलियों को उजाड़ डाला। बीजापुर और गोलकुंडा के सुल्तान उसकी तलवार के आगे खामोश रहे थे। और औरंगजेब को अपनी जूती पर रखता था परंतु अपनों की गद्दारी के कारण अंततः ये वीर औरंगजेब की पकड़ में आया जिसके बाद औरंगजेब ने बड़ी बेरहमी के साथ उसका हाथ काटा पैर काटा, जीभ काटी, आंखें फोड़ी। खाल उतारकर मिर्ची भरी और उसके शरीर के टुकड़े टुकड़े कर दिए, पर फिर भी वो झुका नहीं।
ईस्वी सन 1680 में छत्रपति शिवाजी महाराज के स्वर्ग सिधारने के बाद संभाजी महाराज (Chhatrapati Sambhaji Maharaj) को उनकी सौतेली माता सोराय बाई ने पनहाला किले में घेर लिया ताकि वो राजा ना बन सके और सोराई बाई का बेटा राजा बन जाए। परंतु अपनी सौतेली माँ के इस षड्यंत्र की भनक पड़ते ही शेर के उस शावक ने पन्हाला के कैदखाने की दीवारों को फांदकर पन्हाला गढ़ पर अधिकार जमा लिया।
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और स्वराज के गद्दारों के मस्तक उतारने की सौगंध दिखाते हुए शंभूराजे (Chhatrapati Sambhaji Maharaj) ने राजधानी रायगढ़ की तरफ कूच कर दिया। भर के पहले पहर में यम गर्जना करता हुआ संभाजी का सैलाब राजधानी रायगढ़ में उतरा और हुकूमत पर अपनी विजय का भगवा तान दिया और 20 जुलाई 1680 को पूरे वैदिक मंत्रों के साथ हिंदू हृदय सम्राट छत्रपति संभाजी महाराज राजगद्दी पर बैठे।
संभाजी महाराज ने राजा बनते ही अपनी तमाम सेनाओं को राजधानी रायगढ़ में एकत्र किया और मुगलों के विरुद्ध खुले युद्ध का ऐलान कर दिया। ईस्वी सन 1681 की मध्यरात्रि को छत्रपति संभाजी महाराज ने अपनी पूरी सेना के साथ बुरहानपुर पर आक्रमण कर दिया। क्योंकि बुरहानपुर वो शहर था जो औरंगजेब की दूसरी राजधानी था। इस नगर में न सिर्फ औरंगजेब का खजाना रखा था बल्कि हजारों लाखों हिंदू जो मुगलों के विरुद्ध बगावत करते वो यहाँ कैद में थे।
रात्रि के घोर सन्नाटे में मराठों ने इस इलाके पर सामूहिक रूप से धावा बोला। संभाजी महाराज के नेतृत्व में मराठों ने यहाँ पर तैनात मुगलों को मारकर पूरे नगर पर कब्जा स्थापित कर लिया। शंभूराजे (Chhatrapati Sambhaji Maharaj) ने इस किले से औरंगजेब का खजाना लूट कर पूरे किले को धराशायी कर दिया। मराठों ने जाते जाते इस पूरे के पूरे नगर को तबाह कर डाला।
मराठों के इस पराक्रम से औरंगजेब गुस्से से तमतमा उठा और उसने अपने सबसे बेहतरीन सेनापति हुसैन कुली खां को एक बड़े लश्कर के साथ मराठों की धरती पर उतारा।
हुसैन कुली खां दिल्ली से यह कहकर निकला कि वो 3 दिन में मराठों को मसल देगा। पर वो 3 साल तक वापस नहीं लौटा क्योंकि संभाजी महाराज (Chhatrapati Sambhaji Maharaj) ने उस पर तगड़ा घेरा डाल रखा था। मराठों के आगे उसका पूरा लश्कर लुट गया। सेनाएं मारी गई और वो खुद एक रात मौका पाकर युद्ध भूमि से दुम दबाकर भाग निकला।
इस प्रचंड जीत ने संभाजी महाराज को रातोंरात ढक्कन का सूरमा बना दिया। पर ये बात औरंगजेब बर्दाश्त नहीं कर पाया और उसने मात्र एक महीने बाद खान जहाँ बहादुर को 1 लाख सैनिकों के साथ सतारा में उतारा पर मराठों ने छापामार युद्धनीति के दम पर खान जहाँ को दौड़ा दौड़ाकर मारा, वो महाराष्ट्र में जहाँ भी अपना पड़ाव डालता, मराठे उसकी छावनी पर छापा मार देते। अंततः वो भी लुट पिट कर पुनः दिल्ली भाग गया।
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औरंगजेब इसी तरह अगले दो सालों तक 15 से अधिक बार अपने विशाल बर्बर सेनाओं को महाराष्ट्र में भेजता रहा। पर संभाजी महाराज (Chhatrapati Sambhaji Maharaj) हर बार कभी जंगलों से तो कभी पर्वतों से निकलकर औरंगजेब की सेनाओं को गाजर मूली की तरह काट डालते।
जब सारे प्रयास विफल हो गए तो औरंगजेब स्वयं अपने सभी सेनापतियों के साथ महाराष्ट्र आ गया 9 लाख सेनिकों का विशाल लश्कर 15 मनसबदारों की बड़ी सेनाओं के साथ औरंगजेब ने औरंगाबाद में अपना डेरा जमाया।
औरंगजेब ने आते ही मराठों पर हमले और तेज कर दिए ईसवी सन् 1682 में औरंगजेब की बर्बर सेनाओं ने रामशेज के किले को घेर लिया। संभाजी महाराज (Chhatrapati Sambhaji Maharaj) किले के अंदर थे।
पांच महीनों तक दोनों सेनाओं के मध्य भयंकर युद्ध चलता रहा। पर ऊंचे किले तक औरंगजेब की न तो सेना पहुँच सकी, ना ही तलवार और अंततः वह थक हार कर वापस लौट गया। अपने किले पर हमले से नाराज संभाजी महाराज ने औरंगाबाद की मुगल छावनी पर छापे मारने शुरू कर दिए पर 1684 को भयभीत औरंगजेब ने संभाजी (Chhatrapati Sambhaji Maharaj) को सबक सिखाने की ठानी और उसने अपनी सेना को उठाया और सीधे मराठों की राजधानी रायगढ़ पर आक्रमण कर दिया।
इस समय दक्कनी रियासतों के दो मुस्लिम सुल्तान, आदिलशाह और कुतुब शाह ने भी अपनी सेनाओं के साथ काफिरों को मिटाने के उद्देश्य से इस किले पर हमला बोल दिया। अब संभाजी महाराज चारों तरफ से शत्रुओं से घिर चूके थे। उन्होंने मराठों को किले पर फैला दिया और रायगढ़ की प्राचीर से मुगलों पर तोप, तीर और भालों की बरसात कर दी। इस हमले ने मुगल सेनाओं को तितर बितर कर दिया। अपनी सेनाओं को भागते देख औरंगजेब भी मुँह छुपाता हुआ भाग निकला।
इस घटना ने पूरे भारत में औरंगजेब की इज्जत उतार दी, पर फिर भी औरंगजेब रुका नहीं। उसने मैसूर के राजा और गोवा के पुर्तगालीयों को अपने साथ मिलाकर मराठों को घेरने की योजना बनाई। पर संभाजी महाराज (Chhatrapati Sambhaji Maharaj) को इस बात की भनक लगते ही उन्होंने गोवा पर धावा बोल दिया। गुस्से से लबरेज मराठे नंगी तलवारों के साथ गोवा की धरती पर उतरे और एक एक कर गोवा के किलो पर भगवी ध्वजा चढ़ना आरंभ कर दिया।
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संभाजी महाराज ने गोरों की चमड़ी उधेड़ दी। बोम चर्च के बाहर खड़े संभाजी महाराज ने जैसे ही अंग्रेजों के विरुद्ध महादेव का युद्धघोष किया कि तभी पुर्तगाली सेनापति फ्रान्सिस्को गिड़गिड़ाता हुआ शंभूराजे (Chhatrapati Sambhaji Maharaj) के कदमों में बैठ गया और औरंगजेब से दूर रहने का वचन दिया।
इधर औरंगजेब पागलों की तरह नौ सालों तक संभाजी महाराज के पीछे घूमता रहा पर संभाजी महाराज एक काल की भांति उसकी सत्ता पर मंडराते रहे।
जब औरंगजेब खुले मैदान में संभाजी महाराज (Chhatrapati Sambhaji Maharaj) से नहीं लड़ पाया तो उसने संभाजी महाराज के घर के भेदी का पता लगाया, जिसमें संभाजी महाराज के साले गणेश जी शिर्के का साथ ऑरंगजेब को मिला। गणेश जी ने संभाजी महाराज के पल पल की खबर औरंगजेब तक पहुंचानी शुरू कर दी। ईस्वी सन 1690 को संभाजी महाराज संगमेश्वर में थे। वे जनता की समस्याएं सुन रहे थे और इस समय उनके पास मात्र 500 सैनिक थे।
यह सूचना शिर्के ने औरंगजेब को दे दी, जिसके बाद औरंगजेब ने अपने सेनापति मुकर्रब खान को मात्र 6000 सैनिकों के साथ इस दिशा में भेजा और अपनों की गद्दारी के कारण अंततः यह वीर योद्धा मुगलों के घेरे में आ गया। और फिर यहाँ एक युद्ध हुआ और संभाजी महाराज और उनके घनिष्ठ मित्र कवि कलश को पकड़ लिया गया।
नौ सालों से खुन्नस खाये बैठे औरंगजेब के आदेश पर संभाजी महाराज (Chhatrapati Sambhaji Maharaj) और उनके मित्र कवि कलश को ऊंट पर उल्टा लटकाकर पूरे शहर में घुमाया गया और फिर इन दोनों को औरंगजेब के सामने हाजिर किया गया। औरंगजेब ने संभाजी महाराज से तीन चीजें मांगी। पूरा मराठा राज्य मेरे हवाले कर दो और मेरे गुलाम बनकर राज़ करते रहो। मेरे किलों से जितना भी खजाना लूटा है मुझे वापस कर दो और तीसरा हिंदू धर्म छोड़कर इस्लाम अपना लो पर शंभूराजे (Chhatrapati Sambhaji Maharaj) ने औरंगजेब की एक भी शर्त को मानने से इनकार कर दिया
जिसके बाद औरंगजेब ने दोनों वीरों को जेल में बंद कर दिया पर उन्होंने अन्न जल का त्याग कर दिया जिसपर क्रूर वहशी औरंगजेब ने उन दोनों के नाखून उखाड़ने शुरू करवाए, आंखो में मिर्ची डालकर पानी के लिए तरसा दिया और फिर जलती हुई सलाखें उनकी आंखो में घुसा दी।
जिसके बाद उनके हाथ और पैरों की उंगलियां काटी गई, बालों को खींचकर उखाड़ दिया और फिर धीरे धीरे उनके शरीर की खाल उतारने शुरू की। उनकी जबान काट दी गई। यह सब लगातार 40 दिनों तक चलता रहा। हर रोज़ उन दोनों के शरीर का एक एक अंक काटा जाता, पर शंभूराजे (Chhatrapati Sambhaji Maharaj) झुके नहीं और अंत में उनके शरीर के टुकड़े टुकड़े कर फेंक दिया गया।
आज हम हमारे इन वीर सपूतों को भूल चुकें हैं। हमारे वीर सपूतों की इस कुर्बानी को हमें याद रखना चाहिए Chhatrapati Sambhaji Maharaj की मृत्यु के पश्चात् मराठों ने कैसे लिया बदला इस वीडियो में देखें
Disclaimer
Chhatrapati Sambhaji Maharaj की वीरता की यह कहानी विभिन्न श्रितों से एकत्र कर लिखी गई है जिसमें त्रुटी की सम्भावना निहित है यदि आपको कोई त्रुटी नज़र आती है तो कृपया हमें जरुर बताएँ, धन्यवाद
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