Sher Singh Rana यदि आप इनके कारनामे से परिचित नहीं हैं तो आज जान लीजिए इनके अदम्य साहस की कहानी
Sher Singh Rana
आज हम आपको सुनाएंगे हिंदुस्तान के एक राजपूत के अदम्य साहस की कहानी, जिसे डकैत से सांसद बनीं फूलन देवी की हत्या के आरोप में देश की सबसे हाइटेक और सुरक्षित तिहाड़ जेल में भेज दिया गया। लेकिन बाकी कैदियों की तरह ही घुट घुटकर जेल में जिंदगी बिताना। उस राजपूत का असली मकसद नहीं था और उसको अपना मकसद पूरा करने से जेल की ऊंची ऊंची चारदीवारी भी नहीं रोक पाती हैं।
और वो अपनी जान हथेली पर लिए पहुँच जाता है। एक ऐसे खतरनाक गैर मुल्क जहाँ इंतज़ार कर रहा था उसकी जिंदगी का असली मकसद फिर खतरों से खेलते हुए वो अपना मकसद पूरा करता हुआ वापस लौटता है अपने देश हिंदुस्तान में और फिर चले जाता है उसी तिहाड़ जेल में। जी हाँ, ये कहानी है Sher Singh Rana की, जो किसी फ़िल्मी कहानी से कम नहीं है।
शेरसिंह राणा उर्फ़ पंकज सिंह का जन्म 17 मई 1976 में तबके उत्तर प्रदेश यानी आज के उत्तराखंड के रुड़की में हुआ था। जब शेर सिंह राणा सिर्फ 4 साल के थे तब चंबल में डंका बजता था। कुख्यात डकैत फूलन देवी का। 1980 के दशक की शुरुआत में चंबल के बीहड़ों में फूलन देवी दहशत का दूसरा नाम थी। आज भी चंबल के लोग फूलन देवी का नाम सुनकर सिहर उठते है।
फूलन देवी को बैन्डिट क्वीन यानी दस्यु सुंदरी के नाम से भी जाना जाता था। उसने बेहमई गांव में ही 22 राजपुतों को लाइन में खड़ा करके गोली मार दी, जिसके बाद उसने आत्मसमर्पण किया और 11 साल जेल में रहकर बाहर आई और राजनीति से जुड़ कर सांसद बनीं। चम्बल में घूमने वाली अब दिल्ली के अशोका रोड के शानदार बंगले में रहने लगी। 25 जुलाई 2001 को Sher Singh Rana फूलन देवी से मिलने आया और फिर घर के गेट पर फूलन देवी को गोली मार दी। फूलन देवी की हत्या के बाद राणा ने कहा था कि उसने बेहमई कांड में मरे अपने राजपूत भाइयों का बदला लिया है।
ये भी पढ़ें :- Hugli Crime Story Part 1: बड़े घर की 66 महिलाओं और डिलेवरी बॉय की कहानी
नाम | शेर सिंह राणा |
जन्म तारीख़ | 17 मई 1976 |
जन्म स्थान | रुड़की, उत्तराखंड |
अब यहाँ से शुरू होती है हमारी कहानी फूलन देवी की हत्या के 2 दिन बाद Sher Singh Rana ने देहरादून में पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया और जुर्म स्वीकार कर लिया। केस चलने तक अदालत ने शेर सिंह को तिहाड़ जेल में भेज दिया। तिहाड़ जेल में करीब ढ़ाई साल रहने के दौरान राणा ने कहा था कि तिहाड़ की सलाखें उसे ज्यादा दिनों तक नहीं रोक पाएंगी।
और हुआ भी ऐसा समय ने करवट ली और लगभग 3 साल बाद 17 फरवरी 2004 को राणा फिल्मी अंदाज में तिहाड़ जेल से फरार हो गया। तिहाड़ जैसे अति सुरक्षित जेल से किसी का इस तरह फरार हो जाना अपने आप में बड़ी बात थी। इसलिए राणा एकाएक फिर सुर्खियों में आ गया।
उस दिन उत्तराखंड पुलिस की वर्दी में तीन अज्ञात लोग तिहाड़ जेल पहुंचे थे। उन्होंने तिहाड़ के अधिकारियों से कहा कि वो एक केस के सिलसिले में हरिद्वार की एक अदालत में पेशी के लिए शेर सिंह राणा को लेने आए हैं। वो अपने साथ हथकड़ी और अदालत में राणा की पेशी का ऑर्डर की कॉपी भी लेकर आए थे।
तिहाड़ के अधिकारियों ने ऑर्डर की कॉपी देखी और फिर Sher Singh Rana को बैरक से निकालकर उन फर्जी पुलिसवालों यानी की शेर सिंह राणा के साथियों को सौंप दिया जो राणा को वहाँ से लेकर चले गए। बाद में जब मामले का खुलासा हुआ तो पूरे तिहाड़ जेल के साथ ही पूरे देश में हड़कंप मच गया था। इसके बाद 17 मई 2006 को राणा को कोलकाता से फिर से गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन ये कहानी है इन दो सालों की है जब वो जेल से फरार था ।
जैसा कि हम सब जानते हैं कि भारत की धरती ने बहुत से वीर योद्धाओं को जन्म दिया है और ऐसे ही धरती माँ के एक वीर सपूत योद्धा थे पृथ्वीराज चौहान जो कि हिंदुस्तान के आखिरी हिंदू सम्राट थे। कंधार विमान हाईजैक मामले में तत्कालीन विदेश मंत्री जसवंत सिंह अफगानिस्तान गए थे तो उस समय उन्हें गजनी में पृथ्वीराज चौहान की समाधि होने की जानकारी खुद तालिबान सरकार के अधिकारियों ने दी थी। पृथ्वीराज चौहान की समाधी अफगानिस्तान में थी और मोहम्मद गौरी की कब्र के पास मौजूद थी।
अफगानिस्तान में यह परंपरा थी कि जो लोग मोहम्मद गौरी की कब्र देखने जाते थे, उन्हें पहले पृथ्वीराज चौहान की समाधि का अपमान जूतों से करना पड़ता था। जसवंत सिंह ने जब भारत आकर इस बात का खुलासा किया तो इस बयान को समूचे भारतीय मीडिया ने बढ़ चढ़कर देश की जनता के सामने रखा।
ये भी पढ़ें:- Hugli Crime Story Part 2: बड़े घर की 66 महिलाओं और डिलेवरी बॉय की कहानी
फिर क्या नेता क्या आम आदमी सभी ने पृथ्वीराज चौहान की अस्थियां वापस लाने की वकालत तो की पर प्रयास करने की जहमत शायद किसी ने नहीं उठाई। लेकिन जब Sher Singh Rana को पता चला तो उन्होंने सम्राट पृथ्वीराज चौहान की समाधि के विशेष सम्मान के साथ भारत वापस लाने का प्रण लिया
इसके बाद उसने सबसे पहले रांची से फर्जी पासपोर्ट बनवाया और कोलकाता पहुँच गया जहाँ से राणा ने बांग्लादेश का वीजा बनवाया और पहुँच गया। बांग्लादेश जहाँ राणा ने फर्जी दस्तावेजों की मदद से यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया और इसी दौरान उसने अफगानिस्तान का वीजा भी बनवाया और फिर राणा ने कदम रखा। अफगानिस्तान में अफगानिस्तान में पहुँच कर राणा काबुल और कंधार से होते हुए गजनी पहुंचे।
जहाँ मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान की समाधियां बनी थी। तालिबान की उस जमीन पर हर कदम पर खतरा था। इस तरह तालिबानियों के गढ़ में शेर सिंह राणा ने एक माह गुज़ारा और पृथ्वीराज चौहान की समाधि को खोजते रहे और आखिरकार उन्हें वो जगह मिल ही गई और वहाँ Sher Singh Rana ने पृथ्वीराज चौहान का अपमान अपनी आँखों से देखा और अपने कैमरे में कैद किया। राणा ने बिना डरे जान हथेली पे लिए पृथ्वीराज चौहान की अस्थियों के अवशेष निकालने की पूरी प्लानिंग अच्छे से की।
फिर आया वो दिन जब राणा ने अपने प्लानिंग के अनुसार पृथ्वीराज चौहान की समाधि की खुदाई की और अवशेषों को निकाल कर सम्मानपूर्वक भारत ले आए। इस पूरे घटना को अंजाम देने में तीन माह का वक्त लगा। राणा ने पूरे घटनाक्रम की वीडियो भी बनाई ताकि वो अपनी बात को प्रमाणित कर सके।
बाद में राणा ने अपनी माँ की मदद से गाजियाबाद के पिलखुआ में पृथ्वीराज चौहान का मंदिर बनवाया, जहाँ पर उनकी अस्थियां रखी गई है। हालांकि अधिकारिक तौर पर इस बात की पुष्टि आज तक नहीं हो पायी। लेकिन जिसने भी Sher Singh Rana के साहस की ये कहानी सुनी वो गर्व से भर गया।
एक दिन जांच एजेंसियों को पता चला की कोई कोलकाता में हिंदी अखबार ले रहा है और हिंदी अखबार की वजह से Sher Singh Rana पुलिस की गिरफ्त में आ गया। 2006 में कोलकाता के गेस्ट हाउस से दिल्ली पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर दोबारा तिहाड़ भेज दिया। जहाँ पर उन्होंने “जेल डायरी तिहाड़ से काबुल, कंधार तक” नाम की एक किताब लिखी ऐंड ऑफ बैंडिट क्वीन नामक बायोपिक फ़िल्म शेर सिंह राणा के जीवन पर आधारित है, जिसमें Sher Singh Rana का किरदार अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने निभाया है।
तो ये थी Sher Singh Rana के अदम्य साहस और कारनामे की कहानी शेर सिंह द्वारा उठाए गए इस कदम का स्वागत देश के लोगों ने तहेदिल से किया।
Sher Singh Rana के बारे में अधिक जानने के लिए ये वीडियो देखें click here
Disclaimer
आपको बता दें कि हम, Sher Singh Rana द्वारा दी गई हत्या और भारत के कानून का अनादर करने का बिल्कुल भी समर्थन नहीं करते। इस लेख को लिखने का मकसद सिर्फ शेर सिंह के इस साहसिक कारनामे को सभी के सामने लाने का है। जब सरकार सब कुछ जानने के बाद भी सो रही थी और विपक्ष राजनीति कर रहा था तब शेर सिंह ने अकेले बीड़ा उठाया। धरती माँ के उस वीर सपूत को वो सम्मान दिलाने का जिसके वो हकदार थे। इसके बारे में आप क्या सोचते हैं हमें कमेंट करके जरूर बताएं।
FAQ
Q. शेर सिंह राणा अभी कहाँ हैं?
Ans. शेर सिंह राणा ने अपनी एक पार्टी बना लि है और एक राजनेता के रूप में काम करते हैं
Q. शेर सिंह राणा ने फूलन देवी को कैसे मारा?
Ans. 25 जुलाई 2001 को Sher Singh Rana फूलन देवी से मिलने आया और फिर घर के गेट पर फूलन देवी को गोली मार दी। फूलन देवी की हत्या के बाद राणा ने कहा था कि उसने बेहमई कांड में मरे अपने राजपूत भाइयों का बदला लिया है।
Q. पृथ्वीराज चौहान को कौन लाया?
Ans. शेर सिंह राणा ये दावा करते हैं की उन्होंने गजनी से सम्राट पृथ्वीराज चौहान की अस्थियाँ लेकर आए थे
Q. फूलन देवी को मारने वाला कौन था?
Ans. शेर सिंह राणा पर फूलन देवी की ह्त्या का आरोप है