Punjab में मरीजों पर दवाएं बेअसर , अधिक इस्तेमाल से कीटनाशकों का बढ़ा खतरा।

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मोहाली जिले में 77 घरों पर आधारित एक अध्ययन में एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग, कृषि पद्धतियों और पशुपालन के प्रभावों का विश्लेषण किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार, 71.4% परिवारों का मुख्य व्यवसाय कृषि है, और यहां गेहूं, मक्का और सब्जियों की प्रमुख खेती हो रही है।

Punjab में कृषि में कीटनाशकों के उपयोग और लोगों में एंटीबायोटिक दवाओं के अत्यधिक सेवन से एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस (एएमआर) का खतरा उत्पन्न हो गया है। एएमआर वह स्थिति है जब शरीर पर दवाओं का प्रभाव कम हो जाता है, जिससे संक्रमण का इलाज कठिन हो जाता है और कभी-कभी यह मृत्यु का कारण भी बन सकता है। वर्तमान में, पंजाब में गेहूं की फसल में 78.2% किसान कीटनाशकों का उपयोग कर रहे हैं, जो पीजीआई के कम्यूनिटी मेडिसन विभाग द्वारा जारी रिपोर्ट में उजागर हुआ है।

रिपोर्ट के अनुसार, एंटीबायोटिक दवाओं का अत्यधिक उपयोग, डेयरी उद्योग में बिना सलाह के एंटीबायोटिक्स का प्रयोग और फसलों में कीटनाशकों का इस्तेमाल इस समस्या को बढ़ा रहे हैं। इस गंभीर स्थिति से निपटने के लिए तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता है, और लोगों में जागरूकता पैदा करने की आवश्यकता पर जोर दिया गया है।

मोहाली जिले में किए गए इस अध्ययन में यह पाया गया कि 71.4% परिवारों का मुख्य पेशा कृषि है, और वे गेहूं, मक्का और सब्जियों की खेती करते हैं। इन खेतों में कीटनाशकों का उपयोग आम बात है, और किसान पूरी तरह से दुकानदारों पर निर्भर हैं। अधिकांश फसलें स्थानीय स्तर पर ही उपभोग के लिए उगाई जाती हैं, विशेष रूप से प्याज और टमाटर की खेती, जो केवल घरों में उपयोग के लिए की जाती है।

पशुपालन में भी एंटीबायोटिक दवाओं का अत्यधिक उपयोग हो रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, 68.8% परिवारों में पशुपालन किया जा रहा है, और इन परिवारों में 50% पशुओं का इलाज स्तनदाह (गाय या भैंस के थन में सूजन) के लिए एंटीबायोटिक्स से किया जाता है। पशु चिकित्सक भी प्रत्येक सप्ताह 25% पशुओं को एंटीबायोटिक्स देते हैं। इस स्थिति पर भी जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है, क्योंकि निजी डॉक्टरों द्वारा लक्षणों के आधार पर प्रतिदिन 45 में से 5 मरीजों को केवल एंटीबायोटिक्स लिखे जाते हैं।

सर्वेक्षण से यह भी पता चला कि ग्रामीणों को इस बात की जानकारी नहीं है कि वे अपने पशुओं को किस प्रकार की दवाएं दे रहे हैं। पशुओं को दिए जाने वाले हरे चारे में भी कीटनाशकों का छिड़काव किया जा रहा है, जो घरों या खेतों में उगाए जाते हैं। बाहरी स्रोतों से खरीदी गई चारे में भी एंटीबायोटिक्स होने की संभावना है, जिससे खतरा और बढ़ सकता है।

यह अध्ययन पीजीआई के कम्यूनिटी मेडिसन विभाग के प्रोफेसर डॉ. जेएस ठाकुर और उनकी टीम द्वारा किया गया है। इसमें उन कृषि और पशुपालन प्रथाओं का पता चला है जो एएमआर को बढ़ावा दे रही हैं।

पंजाब में कीटनाशकों और एंटीबायोटिक्स के अत्यधिक उपयोग के कारण एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस का खतरा बढ़ गया है। इसके समाधान के लिए अब से ही इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है, और इसके प्रति जागरूकता अभियान चलाना अत्यंत महत्वपूर्ण है ताकि इस खतरे को कम किया जा सके।

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