Kargil Vijay Diwas 2023 कारगिल विजय दिवस के 24 वे वर्ष पर इन 4 वीर जवानों की कहानी पढ़कर आपका सीना गर्व से चौड़ा हो जाएगा
Kargil Vijay Diwas 2023
हम तो तिरंगा सिर्फ हाथ में लेकर चल सकते हैं, लेकिन भारत के वीर जवान तो तिरंगे में लिपटकर के भी चलते हैं और उनके साथ चलती है उनकी वीरता की कहानियाँ। शौर्य की कहानियाँ और देश प्रेम की कहानियाँ आप और हम तो पहाड़ ऐडवेंचर के लिए चढ़ते हैं पूरी सेफ्टी के साथ में। लेकिन वो पहाड़ों पर ड्यूटी निभाते हैं ताकि आप और हम सुकून से सो सकें।
26 जुलाई को Kargil Vijay Diwas के रूप में मनाया जाता है और बरसों बीत चूके हैं, लेकिन आज भी हमारे रोंगटे खड़े कर देती है उन वीर जवानों की ये कहानियाँ और हमें याद दिलाती हैं। क्या आपकी हमारी जान सुरक्षित है? क्योंकि किसी ने अपनी जान की बाजी लगा दी थी? और हमें याद दिलाती है कि देश प्रेम क्या होता है?
Kargil Vijay Diwas 2023 पहला किस्सा
सबसे पहली कहानी सूबेदार मेजर योगेन्द्र सिंह यादव की, जो 16 साल की उम्र में भारतीय सेना में शामिल हो गए थे और 19 साल की उम्र में साहस और पराक्रम के लिए जो सबसे बड़ा सम्मान है परमवीर चक्र उससे उन्हें सम्मानित किया गया। सबसे कम उम्र में इस पुरस्कार से सम्मानित होने वाले वो हमारे जांबाज सैनिक बने। बुलंदशहर में सिकंदराबाद में एक अहीर नाम का गांव है जहाँ 10 मई 1980 को उनका जन्म हुआ। 1996 में उनके पास में चिट्ठी आई। सेना में भर्ती होने की
पूरे गांव में खुशी का ठिकाना नहीं था। योगेंद्र के पिता जी भी सेना में थे पिता जी को उन्होंने देखा था और उन्हें लगता था की मुझे भी फौज में शामिल होना है तो फौज में शामिल हुए उन्हें बहुत खुशी हुई और सूबेदार मेजर योगेन्द्र सिंह यादव। 1999 में जब उनकी शादी हुई, सिर्फ 15 दिन हुए थे। छुट्टियों में घर आए हुए थे तभी उनके पास में कारगिल हेडक्वार्टर से बुलावा आता है की आपको आना होगा। आसपास के लोग समझते हैं कि अभी तो शादी हुई है, क्या तुम इसको टाल नहीं सकते? बुलावे को क्या तुम रोक नहीं सकते?
लेकिन वो कहते हैं नहीं, पहले ड्यूटी पहले अपना कर्तव्य निभाऊंगा। सामान पैक करते हैं और पहुँच जाते हैं। अपनी ड्यूटी निभाने के लिए जम्मू कश्मीर में जब वो जाते हैं तो उन्हें पता चलता है कि उनकी जो बटालियन ने 18 ग्रेनेडियर वो द्रास सेक्टर की सबसे ऊंची पहाड़ी तोलोलिंग पर लड़ाई लड़ रही है। योगेन्द्र जो थे वो कुछ ही घंटों में पहाड़ी पर पहुँच जाते हैं अपनी बटालियन के पास और जब देखते हैं कि पाकिस्तानी जो आर्मी उनकी तरफ से गोलीबारी हो रही है तो बिना देरी के मोर्चा संभाल लेते हैं और एक समय ऐसा आता है कि उनकी टुकड़ी में बड़े कम सैनिक बचते हैं
दुश्मन सैनिकों को लगता है की शायद सब खत्म हो गए तो थोड़ा रिलैक्स मोड में आ जाते हैं। लेकिन ये उनकी प्लानिंग थी सामने वाले को झांसा देने की? तो जब भी गोलीबारी बंद होती है जब पाकिस्तान को लगता है कि बटालियन खत्म हो गयी, टुकड़ी खत्म हो गए तब फिर से अटैक कर देते। योगेंद्र सिंह यादव की आँखों में एक ही सपना था की उस चोटी पर तिरंगा लहराना था।
और ये कमाल करके वो दिखाते। दुश्मनों पर ताबड़तोड़ वो हमला करते हैं। फिर दुश्मन सैनिक जो होते हैं उनमें से एक पीछे की तरफ अपनी आर्मी को सूचना देता है कि यहाँ पर अभी और इंडियन बचे हुए हैं। पाकिस्तानी और सेना इन पर फिर से हमला करती है। इस हमले में बताया जाता है कि 15 गोलियां उन्हें लग चुकी थी। लेकिन वो लगातार लड़ते रहे।
और नीचे वालों को लगा कि शायद वो शहीद हो चूके हैं लेकिन वो पहाड़ी पर से खिसकते हुए नीचे आए और अपनी बटालियन को पूरी सूचना दी कि वह चोटी पर कितने सैनिक हैं क्या लोकेशन जब उन्हें अस्पताल ले जाया जा रहा था तब भी वो लोकेशन और सारी जानकारी अपने सीनियर्स को दे रहे थे।ये योगेंद्र सिंह यादव की वीरता का कमाल था कि भारत ने टाइगर हिल्स पर तिरंगा लहरा दिया था।
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Kargil Vijay Diwas 2023 दूसरा किस्सा
दूसरी कहानी है कमांडो दिगेंद्र सिंह की, राजस्थान में सीकर जिले के एक गांव में इनका जन्म हुआ। इनके जो पिता थे वो भी भारतीय सेना में शामिल रहे। 1947-48 के युद्ध में उनके जबड़े में 11 गोलियां लगीं थीं। उनके पिता का नाम था शिवदान सिंह जी। अपने पिता के नक्शे कदम पर चलते हुए दिगेंद्र भी भारतीय सेना में शामिल हो गए। अलग अलग जगहों पर इनकी पोस्टिंग रही थी।
जब कारगिल में युद्ध छिड़ा तो इनकी यूनिट को कहा गया कि 24 घंटे में आपको कुपवाड़ा पहुंचना है और फिर मोर्चा संभालने के लिए तैयार रहना है। इनको जो जिम्मेदारी मिली थी वो मिली थी द्रास सेक्टर की। तोलोलिंग की जो पहाड़ियां थीं, उनकी बर्फीली चोटियां को दुश्मन सेना से मुक्त करवाने की, और यह एक ऐसी जगह थी जहाँ हमारी भारतीय फौज की तीन यूनिट फेल हो चुकी थी, तो ये चढ़ाई शुरू करते हैं, रात के सन्नाटे में चढ़ाई पूरी करते हैं। 12 जून की रात को पाकिस्तानी सेना का एक बंकर था, उसमें दिगेंद्र एक हथगोला सरका देते हैं, ज़ोर का धमाका होता है और अंदर जो पकिस्तानी सैनिंक होते हैं वे सब मर जाते हैं।
दुश्मन सैनिकों पर यह बड़ा अटैक था। इनका तीर जो था एकदम सही निशाने पर लगता है पहला बंकर खत्म हो चुका था। उसके बाद में आपसी फायरिंग तेज हो जाती है और इनकी टीम ने पूरे 11 बंकर तबाह किए थे। दिगेंद्र अपनी वीरता को लेकर आगे बढ़ते रहें। दुश्मन सैनिकों पर लगातार हमले करते रहे और ये दिगेंद्र की वीरता का कमाल था कि चोटी पर भी तिरंगा लहराने लगा था। हालांकि जो दिगेंद्र थे वो अपनी जीत से ज्यादा एक्साइटेड नहीं थे क्योंकि उनके जो अपने साथी थे उन्हें खो दिया था। बहुत घायल थे, रो रहे थे। इसके बाद उन्हें कुछ याद नहीं रहा।
जब उनकी आंख खुली तो वो श्रीनगर के आर्मी हॉस्पिटल में भर्ती थे, और तब के तत्कालीन प्राइम मिनिस्टर साहब थे अटल बिहारी वाजपेयी जी। उन्होंने पीठ थपथपा करके कहा था कि वाह मेरे कलयुगी भीम बेटे, तुमने अड़तालीस को मारा दो को और मार देते तो हाफ सेन्चुरी लग जाती। तुम नॉटआउट रहे। दिगेंद्र की इस वीरता के लिए भारत सरकार ने उन्हें महावीर चक्र से सम्मानित किया था।
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Kargil Vijay Diwas 2023 तीसरा किस्सा
तीसरी कहानी है कैप्टन जिंटू गोगोई की, जिनका जन्म हुआ। असम के गोलाघाट जिले के छोटे से शहर में और 17 गढ़वाल राइफल्स रेजिमेंट में पदस्थ थे। 1999 में जम्मू कश्मीर जो एरिया है वहाँ पर अप्पोइंटेड थे इंडिया पाकिस्तान के बीच में जब कारगिल युद्ध छिड़ता है तो 12 दिन पहले इनकी सगाई हुई थी और सगाई की छुट्टियों के लिए घर गए हुए थे। लेकिन यूनिट से बुलावा आता है और उन्हें वापस बुला लिया जाता है।
कैप्टन जो थे पूरे स्टेट के लिए, असम के लिए, वहाँ के यंगस्टर्स के लिए प्रेरणा बन गए थे क्योंकि कारगिल वॉर वो समय था जब आसाम में भी अशांति चल रही थी। क्योंकि वहाँ पर अशांति चल रही थी तो कैप्टन जिंटू गोगोई ने अपने लोगों को कहा कि हमें एक रहना है और हमें भारत के साथ आगे चलना है। भारत का झंडा हैं, तिरंगा उससे बुलंद रखना है।
इस बात से आसपास के लोगों को युवाओं को बहुत इन्स्परेशन मिली थी। कैप्टन को जो काम मिला था वो मिला था। बटालिक सेक्टर में काला पत्थर से पाकिस्तानी सैनिकों को खदेड़ने का और कैप्टन गोगोई वहाँ पहुंचे थे। मोर्चा उन्होंने सम्भाला हुआ था तभी दुश्मन सैनिकों की नजर इन की टुकड़ी पर पड़ जाती है। भारी गोलीबारी होती है। पाकिस्तानी सैनिक कैप्टन जिंटू गोगोई की जो टुकड़ी थी उसको चारों दिशाओं से घेर लेते हैं और कैप्टन गोगोई अपनी रेजिमेंट का जो आदर्श वाक्य था युद्धाय कृतनिश्चयः यानी की दृढ़ संकल्प के साथ लड़ो।
इस को चरितार्थ करते हैं और कमाल की लड़ाई लड़ते हैं, वीरता का परिचय देते हैं और इस उद्घोष के साथ में जो उनकी रेजिमेंट का युद्धघोष था। बद्री विशाल की जय ये जयकारा लगाते हुए दुश्मन सैनिकों पर हमला कर देते हैं और कैप्टन गोगोई की ये जो साहसी कार्रवाई थी इसमें पाकिस्तान के दो सैनिक मारे जाते हैं। कई सारे घायल हो जाते हैं। हालाकि यह जो गोलीबारी हुई इसमें कैप्टन गोगोई भी घायल हो गए हैं।
उनकी उनको भी काफी चोटें आई थीं लेकिन उन्होंने तब तक गोलीबारी जारी रखी जब तक कि वो गिर नहीं गए। गंभीर चोटों की वजह से वो युद्ध भूमि में वीरगति को प्राप्त हो गए। कैप्टन जिंटू गोगोई की ये जो बहादुरी थी और उनका जो सर्वोच्च बलिदान था, इसके लिए उन्हें मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया गया था और उनकी इस वीरता की वजह से ही भारतीय सैनिकों ने काला पत्थर की उस जगह को दुश्मनों से मुक्त करा लिया था।
Kargil Vijay Diwas 2023 चौथा किस्सा
चौथी कहानी है कैप्टन मनोज कुमार पांडेय की। वो कहते थे, मेरे रास्ते में मौत भी आई तो उसे भी मार दूंगा। कैप्टन मनोज पांडे जी आर गोरखा राइफल के पहली बटालियन के जवान थे और कमाल की बात यह रही कि उन्होंने परमवीर चक्र के लिए ही भारतीय सेना जॉइन की थी। जब एक इंटरव्यू में उनसे पूछा गया कि आप आर्मी क्यों जौन करना चाहते हैं, तो उन्होंने कहा परमवीर चक्र के लिए और उनके इस जवाब से वाहन जितने लोग बैठे थे, सब अचंभित थे क्योंकि परमवीर चक्र मरणोपरांत दिया जाता है। और मनोज पांडे साहब ने कहा की मुझे मालूम है कि ये मरणोपरांत दिया जाता है लेकिन मैं इसे जीते जी पाना चाहता हूँ।
1999 का जो कारगिल युद्ध था, उसमें ये भी पहुंचे थे। इन की टुकड़ी को भी ऑर्डर मिला था की आपको जाना है और दुश्मन सैनिकों से लड़ाई लड़नी है, केप्टन पर्सनल डायरी लिखते थे, जिसमें उन्होंने लिखा कि अगर मेरे फर्ज के रास्ते में मौत आती है तो मैं कसम खाता हूँ कि उस मौत को हरा दूंगा। 24 साल की उम्र में शहीद हो गए थे और इन्होंने अपनी माँ से वादा किया था कि 25 वे बर्थडे पर जरूर आऊंगा। आए जरूर थे लेकिन तिरंगे में लिपटकर आए थे।
गोरखा राइफल के पहली बटालियन के मनोज पांडे कारगिल वॉर में लद्दाख के बटालिक सेक्टर में तैनात थे और जुगाड़ टॉप जो था उस पर कब्जे के लिए अपनी जान की परवाह किए बिना दुश्मनों को इन्होंने धूल चटाई थी। दुश्मनों की भारी गोलीबारी के बीच आगे बढ़ते गए और कंधे और पैर में गोली लगने के बावजूद दुश्मन के बंकर में घुस गए और सीधी लड़ाई में उन्होंने दो दुश्मनों को मार गिराया था।
उनके बंकर को नष्ट कर दिया था, बहुत तकलीफ में थे लेकिन इसकी परवाह नहीं की थी। आखिरी बंकर तक पहुंचते पहुंचते बुरी तरीके से घायल हो चूके थे तीन गोलियां मनोज पांडेय के हेलमेट को चीरती उनके सर में घुस गई थी और वह शहीद हो गए थे। हालांकि ये सब जब उन्होंने किया तब तक वो अपनी बटालियन के जवानों के लिए मजबूत बेस तैयार कर चूके थे। और गोरखा राइफल के बाकी जवानों ने दुश्मन सैनिकों को फिर चुन चुन कर मौत के घाट उतार दिया था।
परमवीर चक्र पाने का जो कैप्टन मनोज पांडे का सपना था, वो पूरा हुआ, लेकिन मेडल पाने के लिए वह दुनिया में नहीं रहे। कैप्टन मनोज पांडे को उनके इस अदम्य साहस के लिए मरणोपरांत सेना का सर्वोच्च मेडल परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
एक बार फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ ने कहा था, कि अगर कोई आदमी कहता है की मौत से डर नहीं लगता तो या तो वो झूठ बोल रहा है या फिर वो गोरखा है। और गोरखा होने का फर्ज निभाया कैप्टन मनोज पाण्डेय ने।
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Disclaimer
आज इस Kargil Vijay Diwas 2023 में मैं प्रणाम करता हूँ उन सभी शहीदों को और आप सबको याद दिलाता हूँ कि आप और हम आज इसलिए मुस्कुरा रहे हैं क्योंकि कोई है जो सरहद पर अपनी जान की परवाह किये बगैर लगातार कर्तव्य निभा रहा है। देश के तमाम जवानों को हम सभी की ओर से धन्यवाद और प्रणाम भारत माता की जय।
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