Haryana में मानसून के कारण पिछले कुछ दिनों से काफी बारिश हो रही है। मौसम विशेषज्ञों का कहना है कि लगातार चौथे दिन भी खूब बारिश होने वाली है। महेंद्रगढ़, रेवाड़ी, भिवानी और चरखी दादरी जैसे शहरों में आज भारी बारिश हो सकती है। साथ ही, पंचकूला में शाम तक खूब बारिश होने वाली है। मौसम विशेषज्ञों का कहना है कि गुरुग्राम में एक दिन में सबसे ज्यादा 17 बूंदे बरसीं। महेंद्रगढ़ में 5 और करनाल में 4 बूंदे बरसीं। 8 अन्य जगहें ऐसी रहीं जहां हल्की बूंदाबांदी हुई।
बाकी जगहों पर बारिश नहीं हुई, लेकिन आसमान में बादल छाए रहे। पहाड़ों और मैदानी इलाकों में खूब बारिश होने की वजह से नदियों में सामान्य से कहीं ज्यादा पानी बह रहा है। मारकंडा नदी अब पूरी तरह भर चुकी है और खतरनाक हो सकती है। इस वजह से जिम्मेदारों ने कुरुक्षेत्र के आसपास के कई गांवों को सावधान रहने की चेतावनी दी है। कुछ दिन पहले यमुना नदी का पानी यमुनानगर के 50 से ज्यादा गांवों में भर गया था। इस बीच, सोम नदी में अब पानी कम है, लेकिन यह खेतों में बहुत अधिक रेत लेकर आई, जिससे फसलें बर्बाद हो गईं।
हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में किसानों के लिए मौसम का अध्ययन करने वाले शिक्षक डॉ. मदन खीचड़ ने कहा कि विशेष मानसूनी हवाओं के कारण 16 अगस्त तक बहुत अधिक बारिश होगी। 15 और 16 अगस्त को राज्य में बहुत भारी बारिश की उम्मीद है।
जून से अब तक बारिश की मात्रा में 24 प्रतिशत की कमी आई है, लेकिन जल्द ही सामान्य से अधिक बारिश हो सकती है।
चलिए इसे सरल बनाते हैं! कल्पना करें कि आमतौर पर अगस्त में एक निश्चित मात्रा में बारिश होती है। इस साल, हरियाणा में सामान्य से बहुत अधिक बारिश हुई है – 42% अधिक! सामान्य तौर पर, अब तक, हमें 53.9 मिमी बारिश होनी चाहिए थी, लेकिन इसके बजाय, हमें 76.7 मिमी बारिश हुई। हालांकि, फतेहाबाद, हिसार, कैथल, करनाल, पलवल, पंचकूला और पानीपत जैसे कुछ स्थानों पर उतनी बारिश नहीं हुई जितनी आमतौर पर होती है।
इस जुलाई में हरियाणा में 5 सालों में सबसे कम बारिश हुई। आइए आंकड़ों पर नज़र डालें: 2018 में 549 मिमी बारिश हुई थी। 2019 में 244.8 मिमी बारिश हुई थी। 2020 में 440.6 मिमी बारिश हुई थी। 2021 में 668.1 मिमी बारिश हुई थी। 2022 में 472 मिमी बारिश हुई थी। 2023 में 390 मिमी बारिश हुई थी। और 2024 में सिर्फ़ 97.9 मिमी बारिश हुई थी। कम बारिश की वजह से चावल उगाने वाले किसानों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। उन्हें अपनी फ़सलों को सींचने के लिए कुओं के पानी का इस्तेमाल करना पड़ता है।