हरियाणा। Haryana में अपर जिला जज की नियुक्ति के लिए सामान्य श्रेणी के अभ्यर्थियों को झटका लगा है। पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने रिटेन और ओरल एग्जाम में सामान्य श्रेणी के अभ्यर्थियों के लिए एडीजे चयन मानदंड को बरकार रखा है। इस मामले को चुनौती देने वाली रिट को खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने माना है कि याचिकाकर्ता, जो पहले से तय न्यूनतम अंक प्राप्त करने में विफल रहा, नियुक्ति के लिए अयोग्य था।
याचिकाकर्ता ने शुरू में खंड 15 पर आपत्ति किए बिना अपनी इच्छा से चयन प्रक्रिया में भाग लिया था, उसे केवल इसलिए इसकी वैधता पर सवाल उठाने से “रोका” गया क्योंकि परिणाम उसके विपरीत था।
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा।
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि यह निर्धारित करने का अधिकार संबंधित अथॉरिटी का है। कोर्ट ने कहा है कि न्यायिक पदों के लिए सर्वोच्च योग्यता वाले उम्मीदवारों का चयन सुनिश्चित करने के लिए पात्रता की शर्तें निर्धारित करने का विशेषाधिकार विहित प्राधिकारी के पास है। मुख्य न्यायाधीश शील नागू और न्यायमूर्ति सुमित गोयल की खंडपीठ ने कहा कि, न्यूनतम 50 प्रतिशत अंक प्राप्त करने की आवश्यकता महज एक प्रक्रियात्मक औपचारिकता नहीं है, न ही यह कोई ऐसी सीमा है, जिसे न्यायिक विवेक पर नजरअंदाज किया जा सकता है। बल्कि, यह पात्रता के लिए एक अनिवार्य शर्त है।
50% अंकों में छूट की मांग।
याचिकाकर्ता ने 50 प्रतिशत योग्यता अंकों में छूट की मांग करते हुए तर्क दिया कि प्रतिस्पर्धी चयन प्रक्रिया में कोई निश्चित सीमा नहीं होनी चाहिए। हालांकि, अदालत ने इस तर्क को अस्वीकार करते हुए कहा कि न्यायिक पदों के लिए सर्वश्रेष्ठ उम्मीदवारों के चयन को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से पात्रता मानदंड निर्धारित करने का अधिकार चयन प्राधिकारी के पास होता है। निर्णय में स्पष्ट किया गया कि यह चयन प्राधिकारी का विशेषाधिकार है कि वह ऐसे मानदंड तय करे जो उच्चतम क्षमता वाले उम्मीदवारों की नियुक्ति को सुनिश्चित करें, विशेष रूप से उन पदों के लिए जिनमें महत्वपूर्ण न्यायिक जिम्मेदारियां शामिल हैं।

ग्रेस नंबर की याचिकाकर्ता ने उठाई मांग।
याचिकाकर्ता की अनुग्रह अंकों की मांग पर विचार करते हुए कोर्ट ने कहा कि ऐसी मांग कानूनी रूप से अस्वीकार्य है और सार्वजनिक रोजगार में निष्पक्षता और समानता के संवैधानिक सिद्धांतों के विपरीत है। कोर्ट ने कहा, “पात्रता की शर्तें, एक बार कानूनी रूप से निर्धारित हो जाने के बाद, किसी व्यक्तिगत उम्मीदवार की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए कम नहीं की जा सकतीं, उन्हें कम नहीं किया जा सकता या उनमें फेरबदल नहीं किया जा सकता। सार्वजनिक नियुक्तियों के क्षेत्र में अतिरिक्त या अनुग्रह अंक प्रदान करना, निष्पक्षता और समानता के पवित्र सिद्धांतों से एक गंभीर विचलन होगा।”
सुप्रीम कोर्ट के नियमों का दिया हवाला।
बेंच ने सुप्रीम कोर्ट के न्यायशास्त्र का हवाला देते हुए कहा कि जब तक लागू नियमों में स्पष्ट रूप से प्रावधान न किया गया हो, अंकों को पूर्णांकित करने के विरुद्ध है। Haryana सुपीरियर ज्यूडिशियल सर्विस रूल्स, 2007 में किसी भी छूट या अनुग्रह अंकों की अनुमति नहीं दी गई है, जिससे याचिकाकर्ता का अनुरोध कानूनी रूप से अस्वीकार्य हो गया है। हाईकोर्ट ने कहा कि कानून किसी व्यक्ति के पक्ष में किसी भी तरह की तरजीही या तदर्थ छूट का समर्थन नहीं करता है, खासकर तब जब ऐसी छूट के लिए न तो वैधानिक स्वीकृति हो और न ही योग्यतापूर्ण नियुक्तियों को सुरक्षित करने के घोषित उद्देश्य से कोई उचित संबंध हो।
मानदंड नॉन नेगोशिएबल।
न्यायालय ने याचिकाकर्ता के दावे को खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि चयन मानदंड स्पष्ट, अनिवार्य और गैर-परक्राम्य थे। कोर्ट ने कहा कि इस खंड को चुनौती देना न्यायिक हस्तक्षेप के माध्यम से दूसरा अवसर प्राप्त करने का मात्र एक प्रयास था। पीठ ने निष्कर्ष निकाला कि इस मामले की परिस्थितियों में, याचिकाकर्ता ने विज्ञापन की शर्तों को स्वीकार कर लिया था और निर्धारित मानदंडों के तहत आ चुका था। अतः, उसे नियुक्ति में दूसरा अवसर प्राप्त करने के उद्देश्य से न्यूनतम योग्यता अंकों की शर्त को चुनौती देने का कानूनी अधिकार नहीं था।