Kedarnath Mandir: केदारनाथ मंदिर किसने बनवाया था जानकर हो जाएँगे हैरान  - Trends Topic

Kedarnath Mandir: केदारनाथ मंदिर किसने बनवाया था जानकर हो जाएँगे हैरान 

Kedarnath Mandir ka itihas

Kedarnath Mandir: भगवान भोलेनाथ का केदारनाथ धाम मंदिर आखिर किसने बनवाया था जानकार आपको भी हैरानी होगी 

Kedarnath Mandir

केदारनाथ मंदिर भारत के उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित हिंदुओं का प्रसिद्ध मंदिर है। उत्तराखंड में हिमालय पर्वत की गोद में बना Kedarnath Mandir 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक और साथ ही चारधाम और पंच केदार में से भी एक है। यहाँ की प्रतिकूल मौसम के कारण यह मंदिर अप्रैल से नवंबर माह के बीच ही दर्शन के लिए खुलता है। केवल देश से ही नहीं बल्कि अन्य देशों से भी हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु Kedarnath Mandir में श्री केदारनाथ धाम के दर्शन करने आते हैं। लेकिन बहुत कम लोग ही जानते हैं कि इस प्राचीन और पवित्र तीर्थ स्थल का निर्माण किसने और कब करवाया था? 

Kedarnath Mandir ka itihas
Kedarnath Mandir, image credit har zindagi

तो चलिए आज हम आपको Kedarnath Mandir के केदारनाथ धाम से जुड़े रहस्य और निर्माण से लेकर Kedarnath Mandir के संपूर्ण इतिहास के बारे में बताते हैं।

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Kedarnath Mandir का इतिहास 

Kedarnath Mandir किसने बनवाया इसके बारे में कोई ऐतिहासिक प्रमाण तो नहीं है, लेकिन 1000 वर्ष से Kedarnath Mandir धार्मिक द्रष्टि से महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल रहा है। पत्थरों से बने इस Kedarnath Mandir के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण पांडवों ने पाप मुक्त होने के लिए करवाया था। कुरुक्षेत्र की भूमि पर 18 दिनों तक लड़े गए महाभारत के भीषण युद्ध के बारे में आप सब जानते होंगे। इस युद्ध में सभी रिश्तों की बलि चढ़ गई थी। फिर चाहे वह गुरु शिष्य का रिश्ता हो, भाई भाई का या चाचा भतीजे का।

18 दिनों तक निरंतर कुरुक्षेत्र की भूमि कौरवों और पांडवों के रक्त से लाल हो गई थी। महाभारत का युद्ध समाप्त होने के पश्चात जीत तो अवश्य ही पांडवों की हुई थी, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी क्योंकि उन्होंने भी बहुत कुछ खो दिया था। युद्ध समाप्ति के कुछ समय बाद जब सभी पाण्डव भगवान श्रीकृष्ण के पास बैठ कर युद्ध के परिणामों व प्रभाव के बारे में चर्चा कर रहे थे, तब श्रीकृष्ण ने उन्हें पश्चाताप करने को कहा। श्रीकृष्ण के अनुसार पांडवों के ऊपर ब्रह्म हत्या, गोत्र हत्या, कुल हत्या, गुरु हत्या इत्यादि कई पाप चढ़ चूके थे। इसके लिए उनका प्रायश्चित करना आवश्यक था। 

पांडवों ने भगवान श्रीकृष्ण से इसका उपाय पूछा तो श्रीकृष्ण ने बताया कि उन्हें इन पापों की मुक्ति केवल भगवान भोलेनाथ ही दे सकते हैं। इसके पश्चात सभी पाण्डव भगवान श्रीकृष्ण की आज्ञा से भगवान भोलेनाथ से मिलने के लिए काशी नगरी की ओर चले गए। हालांकि भगवान भोलेनाथ पांडवों से मिलना नहीं चाहते थे। 

भगवान शिव पांडवों के द्वारा किए गए ब्रह्म हत्या और गोत्र हत्या के पाप से अत्यधिक क्रोधित थे। इसलिए वे पांडवों से बिना मिले ही वहाँ से चले गए। पांडवों ने काशी नगरी में भगवान शिव को हर जगह ढूंढा। लेकिन वे उन्हें नहीं मिले। माता पार्वती से पांडवों की ये व्यथा नहीं देखी गई, लेकिन माता पार्वती ने सिर्फ इतना बताया कि महादेव उनसे अत्यधिक क्रोधित थे और साथ ही ये भी बताया कि महादेव हिमालय की ओर गए हैं। इसके बाद सभी पांडव हिमालय के पहाड़ों पर बसे उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में चले गए। 

भगवान भोलेनाथ पांडवों से छुपकर यही आये थे। जब भगवान शिव ने पांडवों को अपने पीछे पीछे गढ़वाल क्षेत्र की ओर आते हुए देखा तो उन्होंने इसका एक उपाय निकाला। वे पहाड़ों के बीच पशु घास के मैदान में चल रहे थे तो भगवान शिव उन पशुओं के बीच गए और बेल रुप अवतार ले लिया ताकि पांडव उन्हें पहचानना पाए।

गढ़वाल के पहाड़ों पर भी पांडवों ने भगवान भोलेनाथ को हर जगह ढूंढा, लेकिन वह उन्हें नहीं मिले। अंत में पांडवों को आभास हुआ कि भगवान महादेव इन्हीं पशुओं के झुंड में हो सकते हैं और महाबली भीम को एक उपाय सूझा और उन्होंने अपने दोनों पैरों को पहाड़ी के दोनों सिरों पर टिकाया और गहनता से महादेव को ढूंढने के लिए सभी पशुओं को अपने पैर के नीचे से निकालना शुरू किया। भीम के विशाल रूप को देखकर सभी पशुओं में हलचल पैदा हो गई और वे इधर उधर भागने लगे, लेकिन एक अपनी जगह पर स्थिर खड़ा रहा। उस बेल पर भीम के विशालकाय रूप का कोई प्रभाव नहीं दिखा।

यह देखकर भीम समझ गया कि यही बैल महादेव का रूप है, महादेव को भी पता चल गया कि भीम ने उन्हें पहचान लिया है। यह देखकर वे बैल रुप अवतार के साथ धरती में समाने लगे। भगवान भोलेनाथ के बैल अवतार को धरती में समाते देख भीम तेजी से उनकी तरफ लपका। और बैल की पीठ अपने हाथों से जकड़ ली। भीम के द्वारा बैल की पीठ अपने हाथों से जकड़े जाने के कारण वह वही पर रह गई। जबकि बेल के अन्य चार भाग उत्तराखंड के चार अन्य स्थलों पर निकले। 

आज उन्हीं चार स्थलों पर चार अन्य केदार हैं। इनमें भगवान शिव के बेल रुप अवतार का मुख, रूद्रनाथ में, भुजाएं डूंगानाथ में, नाभी मध्यमहेश्वर में व जटाएं कल्पेश्वर में प्रकट हुई थीं। इन्हीं पांचों स्थानों को सम्मिलित रूप से पंच केदार के नाम से जाना जाता है। 

अब सवाल ये है की Kedarnath Mandir किसने बनवाया, व इसका क्या इतिहास रहा है तो चलिए आगे की कहानी जानते हैं। भीम के द्वारा भगवान भोलेनाथ के बैल अवतार की पीठ पकड़े जाने के बाद वह वहीं रह गई थी। जब उन्हें बेल के बाकी चार अंग चार अन्य स्थानों पर प्रकट होने का ज्ञान हुआ तब उन्होंने शिव की महिमा को समझ लिया। इसके बाद पांडवों के द्वारा ही इन पांचों जगहों पर शिवलिंग की स्थापना कर शिव मंदिरों का निर्माण करवाया गया। इससे भगवान शिव सभी पांडवों से अधिक प्रसन्न हुए और उन्हें सभी पापों से मुक्त कर दिया। 

हालांकि इसके बाद पांडवों के पोते जन्मेजय ने Kedarnath Mandir के निर्माण को और आगे बढ़ाया और यहाँ आम लोगों को पूजा करने की अनुमति प्रदान की। इसलिए Kedarnath Mandir के निर्माण में जन्मेजय का भी योगदान था।

Kedarnath Mandir से आदिशंकराचार्य का सम्बन्ध

समय के साथ साथ पांडवों के द्वारा बनाया गया है। यहाँ मंदिर जर्जर हो गया। वो कई जगह से क्षतिग्रस्त हो गया। फिर जब भारत की भूमि पर शंकराचार्य ने जन्म लिया तब उनके द्वारा संपूर्ण भारत भूमि की पैदल यात्रा की गई व चारों दिशाओं में चार धाम की स्थापना की गई। तब आदि शंकराचार्य ने इस Kedarnath Mandir का पुनर्निर्माण करवाया था, जिसे आज हम देखते हैं। 

इसके बाद अपने जीवन के अंतिम समय में आदि शंकराचार्य ने इसी Kedarnath Mandir के पास ध्यान लगाया था व समाधि ले ली थी। उनकी समाधि आज भी केदारनाथ मंदिर के पास ही स्थित हैं। फिर 10 वीं से 13 वीं शताब्दी के बीच कई भारतीय राजाओं ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था, लेकिन कहा जाता है की 13 वीं शताब्दी के बाद Kedarnath Mandir विलुप्त हो गया था। केदारनाथ में केवल 2013 की प्राकृतिक आपदा ही नहीं झेली थीं बल्कि 400 वर्षों तक यह मंदिर बर्फ़ से ढका रहा था। 

इन्स्टिट्यूट हिमालय देहरादून के द्वारा एक शोध किया गया, जिसमें बताया गया कि 13 वीं शताब्दी से लेकर 17 वीं शताब्दी तक इस जगह पर भीषण बर्फबारी हुई थी। उस बर्फबारी में ना केवल केदारनाथ मंदिर बल्कि संपूर्ण क्षेत्र बर्फ़ में दब गया था। तब 400 वर्षों तक केदारनाथ मंदिर पूरी तरह से बर्फ़ में ढका रहा था।

उसके बाद 17 वीं शताब्दी में बर्फ़ हटने के बाद मंदिर पुनः देखने में आया और फिर से यहाँ दर्शन और यात्रा शुरू कर दी गई। मंदिर की दीवारों पर बर्फ़ से ढके होने के निशान आज भी देखे जा सकते हैं। हालांकि 2013 में आई भीषण प्राकृतिक आपदा के बाद केदारनाथ मंदिर के आसपास के ढांचों को बहुत क्षति पहुंची थी।

इसके बाद भारत व उत्तराखंड की सरकारों के द्वारा केदारनाथ धाम आदि शंकराचार्य की समाधि व उसके आसपास के स्थलों को पुनः ठीक करवाकर उन्हें नवीन रूप दिया गया और आज फिर से केदारनाथ धाम लाखों करोड़ों भक्तों की श्रद्धा का केंद्र है। लेकिन पुराणो में यह भविष्यवाणी की गई है कि भविष्य में केदारनाथ धाम लुप्त हो जाएगा।

पुराणों के अनुसार नारायण की शक्ति से पहाड़ों का आपस में मिलन होगा और इस क्षेत्र में स्थित सभी धाम लुप्त हो जाएंगे, जिनमें केदारनाथ व बद्रीनाथ धाम मुख्य हैं। पहाड़ों के आपस में मिलन से इन धामों के मार्ग लुप्त हो जाएंगे। वहीं यह एक रहस्य बनकर रह जाएंगे। पुराणो में यह भी कहा गया है कि इसके बाद एक नया धाम बनेगा जिसे भविष्य बद्री धाम के नाम से जाना जाएगा। 

गौरी कुंड से केदारनाथ धाम यात्रा की जानकारी के लिए ये वीडियो देखें

तो ये था बाबा भोलेनाथ के Kedarnath Mandir का इतिहास, आशा है जानकारी आपको पसंद आई होगी। 

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