भावाल सन्यासी: मरने के 12 साल बाद साधु बनकर लौटा राजा - Trends Topic

भावाल सन्यासी: मरने के 12 साल बाद साधु बनकर लौटा राजा

भावाल सन्यासी

इतिहास में दर्ज भावाल सन्यासी की एक ऐसी घटना जिसने पूरे बंगाल को हिला कर रख दिया था और इस कहानी को सुनकर आज भी लोगों को आश्चर्य होता है 

भावाल सन्यासी और उनसे जुड़े किस्से 

ये कहानी एक ऐसे व्यक्ति की है जो मरने के 12 साल बाद फिर से जिंदा हो गया था। यह घटना भारत ही नहीं बल्कि अपने समय में पूरी दुनिया में चर्चा में रही थी। यह वाकया बांग्लादेश की राजधानी ढाका से लगभग 35 किलोमीटर दूर भावालरियासत की है, जो कि अब बांग्लादेश का हिस्सा है।

बात 1901 की है जब इस रियासत के आखिरी राजा राजेंद्र नारायण रॉय का निधन हो गया था। राजा राजेंद्र नारायण के तीन पुत्र और तीन पुत्रियां थीं। इनके मझले पुत्र का नाम था रामेन्द्र  नारायण रॉय। राजा राजेंद्र नारायण रॉय की मौत के बाद उनकी पत्नी विशाल मणि देवी तीनों बेटों और बहुओं के साथ जयदेवपुर राजबाड़ी में ही रहती थी। कुछ दिनों बाद मंझले पुत्र का स्वास्थ्य खराब हो गया, तब पारिवारिक डॉक्टर ने उन्हें दार्जिलिंग जाकर स्वास्थ्य ठीक करने की हिदायत दी।

भावाल सन्यासी
भावाल सन्यासी की कहानी

18 अप्रैल 1909 को नौकर चाकर लेकर रामेन्द्र अपनी पत्नी विभावती देवी, पत्नी के भाई सत्येंद्र नाथ और डॉक्टर आशुतोष दास गुप्ता के साथ दार्जिलिंग पहुंचे। कुछ दिन बीतने के बाद खबर फैली की रामेंद्र नारायण की मृत्यु हो गई है और उनके अंतिम क्षणों में उनकी पत्नी और पत्नी के भाई ही उनके साथ थे। रामेन्द्र  की मौत को बहुत सी कहानियों प्रचलित हैं।

एक कहानी की मानें तो अंतिम संस्कार के लिए रामेन्द्र  के शरीर को घाट पर ले जाया गया। अचानक से तूफान उठा और मूसलाधार बारिश होने लगी। क्रिया कर्म करने गए लोग शरीर को वहीं छोड़कर जान बचाने के लिए सुरक्षित स्थान पर पहुंचे। अगले दिन जब लोग क्रिया कर्म पूरा करने के लिए वापस गए तो रामेन्द्र  का शरीर वहाँ नहीं मिला। गौरतलब है कि रामेन्द्र  के परिवार को बाकी लोगों ने यह जानकारी दी कि दाह संस्कार पूरा कर दिया गया है।

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भावाल सन्यासी का राज 

ढाका में 1920 के दशक में भस्म रमाए एक सन्यासी पहुंचा जिसे लोग भावाल सन्यासी कहकर पुकारने लगे । चार महीनों तक यह भावाल सन्यासी सड़कों पर घूमता रहा और कई लोगों की नजर उसपर पड़ी। वजह थी उसकी कद काठी। इसी के साथ यह अफवाहें भी उड़ने लगीं कि वह भावाल सन्यासी कोई और नहीं भावाल रियासत का मंझला राजकुमार रामेंद्र है। कुछ स्थानीय निवासियों ने भावाल सन्यासी को जयदेवपुर स्थित भावालरियासत की राजबाड़ी ले जाने का प्रबंध किया। 12 अप्रैल 1921 को ये सन्यासी राजमहल पहुंचा।

भावाल सन्यासी और रामेन्द्र नारायण 

कहते हैं जब भावाल सन्यासी को उनकी पुरानी तस्वीर दिखाई गई तब वो ज़ोर ज़ोर से रोने लगे और इसके 10-12 दिनों के बाद उन्होंने घोषणा कर दी की वो कोई और नहीं रामेन्द्र  नारायण रॉय है।

भावाल रियासत का कोई उत्तराधिकारी नहीं था, क्योंकि रामेन्द्र  के बड़े और छोटे भाइयों की मौत हो गई थी और सभी निसंतान थे। मरने के 12 साल बाद वापस लौटे। भावाल सन्यासी ने रामेन्द्र से जुड़े तमाम सवालों के जवाब दिए। उसने बताया कि जब उसका दाह संस्कार करने के लिए ले जाया जा रहा था तब तेज बारिश शुरू हो गई। लोग मृत देह को छोड़कर खुद की जान बचाने के लिए भागे। उसी समय नागा साधुओं का एक समूह वहाँ से गुजर रहा था।

रामेन्द्र कैसे बने भावाल सन्यासी 

नागा साधुओं ने उसकी जान बचाई और इलाज किया। इलाज के दौरान याददाश्त चली गई और वो नागा साधुओं के साथ ही रहने लगा। मर कर लौटे राजकुमार का कहना था कि उसकी पत्नी और पत्नी के भाई ने जहर देकर उसकी जान लेने की कोशिश की थी।

अब सवाल यह था की कोई मरने के 12 साल बाद वापस कैसे आ सकता है? भावाल सन्यासी अगर झूठ बोल रहा है तो इतनी समानताएं कैसे? जिसका दाहकर्म किया गया वो कौन था? ऐसे ही अनगिनत सवाल ना सिर्फ रॉय परिवार बल्कि आम जनता के बीच भी उठ रहे थे। अंग्रेज सरकार के लिए भी यह एक सिरदर्दी थी। 

अपनी रियासत को अंग्रेजों से वापस पाने के लिए उस भावाल सन्यासी ने 1933 में ढाका कोर्ट में मामला दायर कर दिया। मर कर लौटे राजकुमार का केस बैरिस्टर बी सी चटर्जी ने अपने हाथ में लिया। यह कोर्ट केस भारत समेत दुनियाभर के सबसे चर्चित कोर्ट केसेज में से एक है। सैकड़ों गवाह पेश किए गए, सैकड़ों सबूत जुटाए गए और इस केस की कई बार सुनवाई की गई।

30 जुलाई 1946 में। प्रिवी काउंसिल ने मर कर लौटे राजकुमार के हक में फैसला सुनाया। कोलकाता के काली मंदिर में रामेंद्र पूजा अर्चना करने के लिए पहुंचे। जहाँ उन्हें स्ट्रोक हुआ और इसके 2 दिन बाद ही उनकी मौत हो गई। 13 अगस्त 1946 को राजकुमार रामेन्द्र  का क्रियाकरम  कर दिया गया। उनकी पत्नी विभावती देवी ने इसे ऊपर वाले का इंसाफ बताया और रियासत का एक भी पैसा लेने से इनकार कर दिया।

ये थी भावाल सन्यासी की कहानी जो अपने साथ कई सवालों को जोड़े हुए है लोग आज तक नहीं समझ पाए की आखिर यह भावाल सन्यासी क्या सच में रामेन्द्र था या फिर कोई और 

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Disclaimer 

भावाल सन्यासी से जुडी यह कहानी विभिन्न श्रोतों से प्राप्त जानकारी के अनुसार लिखी गई है जो केवल इतिहास की जानकारी और ज्ञानवर्धन के लिए है जिसमें किसी भी प्रकार की त्रुटी होना संभव है, किसी भी प्रकार की त्रुटी होने पर कृपया हमें उचित मार्गदर्शन दें 

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